प्रिंस राजकीय प्राथमिक विद्यालय संथू में पढने वाला पांचवीं का छात्र है | इसके पिता बढ़ई है | जिनका लकड़ियों के सामान बेचने का व्यापार है।
प्रिंस से मेरी पहली मुलाकात विद्यालय में क्रिसमस पर कर रहे कार्य के दौरान हुआ था | जिसमे प्रिंस ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था | दूसरे दिन ही एक आवाज मुझे किसी एक बच्चे की और खींचती चली गयी । वह आवाज थी प्रिंस की, जब किसी बच्चे ने उसे कपड़ा गन्दा करते देख बोला कि “इतना कपड़ा गन्दा किया है आज तेरी माँ तुझे पिटेगी” इस पर प्रिंस ने पलट कर जबाब दिया कि “किसकी हिम्मत है जो मुझे पीट सके ? माँ पीटेगी मुझे ?उनकी सामत आई है क्या ?” मैंने उससे पूछा-“ क्यों माँ आप से गुस्सा नहीं होती है क्या ? तो प्रिंस ने कहा “गुस्सा होती है पर थोडा बहुत। मुझे घर में कोई हाथ भी नहीं लगाता। मारना पीटना तो दूर कि बात है।”
कुछ दिनों बाद मैं उस विद्यालय से नियमित क्लास के लिए जुड़ा | अब मेरी मुलाकात प्रिंस से साप्ताहिक होने लगी | इस दौरान मुझे विद्यालय से भी पता चला कि अगर उन्हें शैतानी में किसी को पुरस्कार देने का अवसर मिले तो एकलौते हकदार प्रिंस महोदय ही होंगे | इसके साथ ही साथ मैं महसूस किया कि प्रिंस खुद को अन्य बच्चों से ज्यदा समझदार और बड़ा मानता है | उसे दूसरों को परेशान करना, कूदना, भागना , क्लास से बाहर जाने के तरह तरह बहाने बनाना ज्यादा पसंद है | भले ही वह शैतानी ज्यादा करता है पर उसमे मुझे समझदारी बहुत नजर आयी | वह रोज अपनी शैतानी के करण अपने शिक्षक से पिटाई खाता था । सारे शिक्षक उसकी शैतानी से परेशान थी ।
लेकिन मुझे लगता था कि प्रिंस सब समझ सकता है बल्कि वह अन्य बच्चों से ज्यादा समझ सकता है | मैंने उससे अकेले में बात किया की – “क्यों सब तुम्हारी पिटाई करते है ?, तुम लोगों कि बात क्यों नहीं मानते और पिटाई खा जाते हो ?“ इस पर वह बोला- “पता नहीं सर घर पर किसी कि हिम्मत नहीं होती मुझे कुछ भी कहने की पर स्कूल में जिसको देखो मुझे पीटते रहते है |” फिर मैंने प्रिंस से दोस्ती कर ली और उसे अपनी आर्ट क्लास का मॉनिटर बना दिया |
अब वह प्रत्येक सप्ताह मेरे विद्यालय जाने से पहले ही क्लास में बच्चों को गोला में बैठाना, मुझे सुनाने के लिए एक कविता तैयार कर आने लगा जिससे मैं उसकी तारीफ पूरे क्लास के सामने कर सकूँ। जब मैं उसकी तारीफ करता तो वह बहुत खुश होता और कोशिश करता कि उसे तारीफ का दोबारा मौका मिले | इस तरह वह धीरे धीरे क्लास में रहने लगा | उसकी रूचि क्लास में बनने लगी | इसके साथ ही साथ विद्यालय कार्य में भी हाथ बँटाने लगा | फिर सबको समझ आ गया कि प्रिंस डांट मार से नहीं मनाने वाला और न ही वह जो कर रहा है उसे नजरंदाज करने से बात मान लेगा। प्रिंस को समझना है तो हमें उससे प्यार से बात करनी होगी | कुछ ही दिनों में प्रिंस सभी का चहेता बन गया।
छोटा होने तथा साईकिल ठीक से नहीं चला पाने के करण प्रिंस घरौंदा नियमित क्लास से तो नहीं जुड़ पाया पर समय -समय पर घरौंदा क्लास या कार्यशाला में शामिल होकर उसने बहुत कुछ सीखा। आज वह परिवर्तन पुस्तकालय और झरोखा से भी जुड़ा हुआ है और खूब तरक्की कर रहा है। |