दिव्या 2017 से बाल रंगमंडली की कलाकार हैं और आज दिव्या सामुदायिक रंगमंच के साथ अपनी अभिनय क्षमता को निखार रही है। ये गाँव नरेन्द्रपुर से आती हैं और इनके पिता श्री शंकर पटेल बंगलोर में एक प्राइवेट कम्पनी में मकेनिक के पद पर कार्यरत हैं । दिव्या स्कूल स्तर से ही सांस्कृतिक कार्यक्रम में रूचि लेती थीं और हमेशा किसी ऐसे अवसर के तलाश में रहती थीं जिसमें वे अपने अन्दर के कलाकार को और निखार सकें और अपनी कल्पनाओं को उड़ान दे सकें |
वे बताती हैं-“ जैसे ही मुझे परिवर्तन बाल रंगमंडली के बारे में पता चला तो मैं सीधे आशुतोष सर से मिली और इस मंडली से जुड़ने की इच्छा ज़ाहिर किया और जुड़ भी गयी |”
दिव्या शुर से ही मेहनती एवं प्रतिभावान छात्रा रही हैं। इन्हें भविष्य में एक प्रसिद्ध गायिका बनाना है जिसके लिए ये लगातार प्रयासरत हैं और निरंतर अभ्यास में जुटी रहती हैं और तो और काबिलेतारीफ बात यह है कि दिव्या एक उम्दा अभिनेत्री भी हैं जो इन्हें खुद पता नहीं है। यह तो जब वे मंच पर पहुँच पात्रों को बखूबी जीवंत कर देती हैं तो दर्शक इनके अभिनय के कायल हो जाते हैं।
बाल रंगमंडली से जब दिव्या जुड़ीं तो इनका रुझान गीत-संगीत की तरफ काफी ज्यादा था लेकिन फिर धीरे- धीरे ये अभिनय के गुणों को भी सीखती रहीं और अब वे अपने सीखे कौशल से समुदाय के अन्य बच्चों को परिवर्तन से जुड़ने के लिए प्रेरित करती हैं। समुदाय के उन बच्चों से भी संपर्क करती हैं जिनका रुझान किसी न किसी माध्यम से कला के प्रति है परन्तु वे अपने पारिवारिक दबाव या सामाजिक अवहेलना के कारण उस विधा से जुड़ नहीं पाते हैं। दिव्या वैसे बच्चों के परिवार के लोगों से मिलती हैं और उन्हें अपने कार्यों से परिचित करवाती हैं, जिसके परिणाम स्वरुप आज कई ऐसे बाल कलाकार बाल रंगमंडली से जुड़ नाटक,गीत संगीत के कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं और कलात्मक संतुष्टि और प्रशंसा बटोर रहे हैं।
यह गौरतलब है कि दिव्या के लिए यह रंगमंचीय यात्रा आसान नहीं थी और आगे भी नहीं होने वाली है लेकिन कला के प्रति उनकी लगन और समर्पण के कारण आज दिव्या समुदाय में एक नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हैं | फिर भी समुदाय के लोग अपनी रूढ़िगत सोच से बाज नहीं आते हैं और बोलते हैं-“ तुम इतनी छोटी उम्र से किसी की पत्नी बनती हो तो किसी की बेटी और बेटा। ये लड़कियों के लिए ठीक नहीं है, तुम और कुछ भी कर सकती हो ये नाच-नौटंकी में तुम कुछ नहीं कर पाओगे……..।
“ लेकिन दिव्या इन बातों से परेशान नहीं होती हैं और सभी कठिनाईयों और आलोचनाओं को सहज भाव से लेते हुए अपने लक्ष्य हासिल करने का स्वप्न देखती रहती हैं।इनको इस तरह सहज करने में इनके परिवार का भी काफी महत्वपूर्ण योगदान है ख़ासतौर पर इनके पिता का क्योंकि वे भी अब यह सपना देखते हैं कि उनकी बेटी एक दिन एक बेहतरीन गायिका बने और अपने क्षेत्र का नाम रोशन करे। दिव्या की कला के इस उठान और आत्मविशास से भरे व्यक्तित्व के लिए वे अनेक बार परिवर्तन रंगमंडली को धन्यवाद देते हैं।