We implement strategies for community, family and individual growth across 6 major domains - ‘education’, ‘adolescent girl and women empowerment’, ‘community sports’, ‘livelihood enablement’, ‘agriculture’ and ‘community theatre and music’. Our core belief is that everyone should have equal access to different opportunities.
जमालहता बुनकरों के गाँव के नाम से प्रसिद्द है | इस गाँव में घर-घर बुनकर हुआ करते थे | प्रतिदिन एक ट्रक कपड़े की बुनाई पूरी की जाती एवं देश के अन्य हिस्सों में भेज दिया जाता था | इस गाँव के बुने गये कपड़े विदेशों तक पहुँचाया जाता था | हरेक परिवार इस बुनकरी पर निर्भर रहती थी | गाँव के बुनकर द्वारा तैयार किये गये ट्वील चादर और सूती मसहरी एक अपना अलग पहचान बना रखी थी | 90 के दसक में जनता धोती के आर्डर प्राप्त करने के उपरांत मजदूरी न मिलने और पॉवर लूम की प्रतिस्पर्धा ने इस काम को पूरी तरह समाप्त कर दिया | इसी दौरान गाँव के नवयुवकों में विदेश जाने की होड़ मच गई और देखते ही देखते लगभग हरेक परिवार से लोग विदेशों में नौकरियाँ करने लगे | गाँव के बचे नवयुवक फेरी या मजदूरी करने लगे | बुनकरी 1995 तक पूरी तरह समाप्त हो गई | इस दौरान के एक बुनकर की कहानी समेटा गया है कुछ वाक्यों में जो निम्न प्रकार से है :-
बुनकरों के गाँव के नाम से प्रसिद्ध जमलहाता में जन्मे सलातूद्दीन अंसारी अपने 5 भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं | इनके पिता जी भी एक कुशल बुनकर थे | इनके घर में भी दादा एवं पिता जी के जमाने में बुनकरी हुआ करता था | उस समय के अधिकतर बुनकर पूरी तरह से बुनकरी पर ही निर्भर हुआ करते थे | इनके पिता जी भी अपना घर-संसार इसी काम को करके चलाते थे | इनके सभी बड़े भाई गैर जिम्मेदार थे फिर भी इन्होने अपने पिता जी का हाथ बटाते हुये इंटर तक की पढ़ाई पूरी की | घर की स्थिति आर्थिक रूप से बिलकुल ही ठीक नही थी | उस समय घर के ये सभी काम जैसे:- धागे को धोना,सुखाना,रंगाई करना इत्यादि करते थे | वर्ष 1980 में इनके भाइयों ने अलग कर दिया | ये अकेले अपने लिए कमाते और खाना बनाकर खाते | 1989 में इनकी शादी हो गई | तब से ये फेरि का काम करने लगे | 1990 के करीब इन्होने बुनाई के कौशल को भी सीख लिया | तब ये चादर,मसहरी,शर्ट का कपड़ा,गमछा इत्यादि तैयार कर लेते थे |
प्रशांत कुमार , पिता श्री नाथ साह , ग्राम छाज्वा बलिया का रहने वाला है तथा राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय, बंगरा उज्जैन के वर्ग 10 का छात्र है | यह तीन बहनों का अकेला भाई है जिससे इसे घर में भी बहुत प्यार –दुलार मिलता है । वर्ष 2017 के अप्रैल महीने में यह वर्ग 08 से वर्ग 09 में गया और इसी के साथ यह परिवर्तन द्वारा चल रहे लीडरशिप प्रशिक्षण में शामिल हुआ | इसमे नये लोगो के साथ तालमेल बनाना , अपना शक्ति और दायरों की पहचान करना , निर्णय लेना, मनोभाव पर नियंत्रण करना , रिस्तो को बेहतर करना जैसे विषयों के प्रशिक्षण में यह शामिल हुआ | प्रशिक्षण के विषयों ने इसके मन को काफ़ी प्रभावित किया और यह हमेशा कुछ आगे बढ़ कर बढिया करने के ताक मे रहने लगा | आगे बढकर काम करने में सबसे पहले यह परिवर्तन में फुटबॉल की टेकनिक सीखना शुरू किया | लेकिन अभी भी यह मौके की तलाश में था , जिससे आगे बढ़ कर कुछ किया जा सके , इसी क्रम में स्कुल में तरंग खेल कार्यक्रम शुरू हुआ जो इसके लिए कुछ करने का एक बड़ा अवशर था | इसने इसमे भाग लिया और 2018 के तरंग खेल के जिलास्तरीय खेल प्रतियोगिता में 1500 मीटर के दौड़ (Atheletics) प्रतियोगिता में दूसरा स्थान प्राप्त किया |
धर्मेन्द्र कुमार राम , पिता श्री हरेन्द्र राम , बिहार के सिवान जिले के गरार गाँव का रहने वाला है तथा राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय, बंगरा उज्जैन के वर्ग 10 का छात्र है | यह एक बहन और पांच भाइयों में चौथे नम्बर पर है | वर्ष 2017 के अप्रैल महीने में यह वर्ग 08 से वर्ग 09 में गया और इसी के साथ यह परिवर्तन द्वारा चल रहे लीडरशिप प्रशिक्षण में शामिल हुआ | इसमे नये लोगो के साथ तालमेल बनाना , अपना शक्ति और दायरों की पहचान करना , निर्णय लेना, मनोभाव पर नियंत्रण करना , रिस्तो को बेहतर करना जैसे विषयों के प्रशिक्षण में यह शामिल हुआ | प्रशिक्षण के विषयों ने इसके मन को काफ़ी प्रभावित किया और यह हमेशा कुछ आगे बढ़ कर बढिया करने के ताक मे रहने लगा | लीडरशिप प्रशिक्षण के दौरान उमंग दवरा चल रहे फूटबल ट्रेनिंग की बात मैंने की तो यह उसके लिए काफी उत्शुक हुआ और उससे जुड़ने के लिए तैयार हो गया | आगे बढकर काम करने का उत्साह हमने प्रशिक्षण में भी देखा था | किसी भी काम हो या बात जोर से “जी सर” कहकर आगे आता और उस काम को पूरा करता | फुटबॉल ट्रेनिंग की जानकारी मिलने पर परिवर्तन में फुटबॉल की टेकनिक सीखना शुरू किया |
मेरा नाम रूबी खातून है | मैं सिवान जिला अंतर्गत जीरादेई प्रखंड के बाबू के भटकन (नरेन्द्रपुर) गाँव की निवासी हूँ | मेरे पिता का नाम इदरिस अंसारी है माता का नाम अबरून प्रवीन है | मैं दो भाई दो बहन हूँ मैं दुसरे स्थान पर हूँ | मैं अभी स्नातक की पढ़ाई कर रही हूँ , मैं अपनी पढ़ाई 10 तक नानी की घर सुरबाला में रह कर की हूँ | इंटर की पढ़ाई अपने घर बाबू के भटकन में रह कर की हूँ और आज भी यहीं रह कर पढ़ रही हूँ | मेरे पिता जी विदेश में प्राइवेट नौकरी करते हैं और वे दो साल पर घर आते हैं उनके अनुपस्थिति में मेरी देख भाल मेरी ममी करती है | मेरा लक्ष्य है पुलिस ऑफीसर बनने का मैं रोज सुबह में 30 मिनट दौर लगाती हूँ | मैं अपने घर से रोज 8 किलोमीटर साइकिल चलाकर टाइपिंग सिखने सिवान जाती हूँ | मुझे साइकिल चलाना अच्छा लगता है |
एक गाँव है ‘बलिया’ यह सीवन जिला के ‘आंदर’ प्रखंड से 6 किलोमीटर की दूरी पर है| इस गाँव में हिन्दू, मुस्लिम जाती के लोग रहते हैं, इस गाँव में यादव जाती के ज्यादा लोग रहते हैं | यादव लोग अपने ‘बेटियों’ से ज्यादा कर घर और खेत का काम कराया करते हैं | प्रिया यादव पिता श्री नन्द किशोर यादव, माता श्रीमती इन्दु देबी, गाँव बलिया की स्थाई निवासी है | अपने पिता के पांचवें संतान में तीसरे स्थान पर है, तीन भाई और दो बहन है | पिता पेसे से किसान है और माँ घर का काम करती हैं | प्रिया क्लास दस में पढ़ती है | प्रिया वर्ष 5 मई 2018 में परिवर्तन में कम्पूटर सिखने अपने दोस्तों के साथ आया करती थी और परिवर्तन फुटबॉल ग्राउंड की ओर जाया करती थी | एक दिन फुटबॉल कोच ‘रिंकू कुमारी’ का नजर प्रिय पर पड़ी तो उसने पूछी क्या फुटबॉल खेलना चाहती हो? जबाब था हैं |